
पाबंदी के बावजूद करोड़ों की तस्करी: PWD, राजस्व और पुलिस पर साठगांठ का सीधा आरोप।
जनता का आक्रोश: ‘दोषी अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त करो!’
चंद्रपुर/महाराष्ट्र
दि. 04 नवंबर 2025
संवाददाता:– अनुप यादव ग्लोबल महाराष्ट्र & मिशन न्यूज़
पुरी खबर :– चंद्रपुर जिले में रेत के अवैध उत्खनन पर शासन की पाबंदी के बावजूद यह कारोबार फल-फूल रहा है। शासन के आदेशों और पर्यावरणीय नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए, यह ‘रेत तस्करी’ अब केवल गैरकानूनी धंधा नहीं रही — यह सत्ता और प्रशासन के संरक्षण में चलने वाला संगठित अपराध बन चुका है।
नदियों का अस्तित्व मिट रहा है, पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है, और जनता की आवाज़ को कुचल दिया जा रहा है।
जिस रेत से विकास होना चाहिए था, वही आज भ्रष्टाचार की नींव बन चुकी है।
🚨 यह ‘रेत माफिया’ नहीं, ‘सरकारी तंत्र की डकैती’ है!
राज्य सरकार ने 10 जून 2025 से जिले में रेत उत्खनन पर पूर्ण पाबंदी लगाई थी। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।
प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से आरक्षित रेत घाटों से दिन-रात भारी मशीनों के जरिए रेत की चोरी जारी है।
जहाँ रोकथाम की जिम्मेदारी प्रशासन की थी, वहीं अब वही अधिकारी इस अवैध कारोबार की ढाल बन चुके हैं।
गांव के नागरिकों ने कई बार शिकायतें दीं, पर फाइलें या तो गायब कर दी गईं या दबा दी गईं।
स्थानीय नेताओं और अधिकारियों के बीच का यह गठजोड़ जनता के भरोसे पर सीधा प्रहार है।
🛑 नियमों का खुला उल्लंघन, सरकारी घाट बने अवैध तस्करी के अड्डे
जिन घाटों को सार्वजनिक बांधकाम विभाग (PWD) या अन्य सरकारी प्रकल्पों के लिए सुरक्षित रखा गया था, वे अब निजी ठेकेदारों और रेत माफिया के लिए सुनहरा खज़ाना बन गए हैं।
जिले के अनेक स्थानों पर भारी-भरकम पोकलेन मशीनें दिन-रात चल रही हैं, ट्रक खुलेआम रेत लादकर निजी प्रकल्पों तक पहुँच रहे हैं, और प्रशासनिक अधिकारी ‘मूकदर्शक’ बनकर तमाशा देख रहे हैं।
कई जगहों पर ग्रामीणों ने इन मशीनों को रोकने की कोशिश की तो उन्हें पुलिस धमकाने पहुंच गई।
सरकारी घाट अब “सरकारी लूट के केंद्र” में बदल चुके हैं — और हर ब्रास रेत भ्रष्टाचार की गवाही दे रही है।
🎯 सत्ता का संरक्षण और प्रशासन की संलिप्तता
ग्रामीणों का कहना है कि इस पूरे अवैध कारोबार के पीछे स्थानीय नेताओं और कुछ विभागीय अधिकारियों का गठजोड़ है।
> “अगर कोई आवाज उठाता है, तो कार्रवाई माफिया पर नहीं बल्कि शिकायतकर्ता पर होती है,”
ऐसा कहना है एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता का।
यह सिलसिला सालों से चल रहा है, और हर प्रशासन बदलने पर केवल चेहरे बदलते हैं, सिस्टम वही रहता है।
अवैध कमाई की यह गंगा ऊपर से नीचे तक बहती है — और हर स्तर पर उसका हिस्सा तय है।
रोज़ाना करोड़ों की रेत अवैध रूप से बेची जा रही है, जिससे सरकारी राजस्व को भारी नुकसान हो रहा है।
📂 जांच में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
हमारी टीम की जांच ने जो प्रमाण जुटाए हैं, वे प्रशासनिक साठगांठ की ओर इशारा करते हैं—
अवैध उत्खनन ठीक उसी वक्त होता है जब अधिकारी गश्त पर नहीं होते या फिर पुरी सेटिंग होती है?
बड़े अधिकारियों की पल पल की खबर तस्करों को पहले से सूचना दी जाती है?
विभागीय कर्मचारियों और माफिया के बीच नकद कमीशन का लेन-देन प्रति माह होता है?
कई जगहों पर ड्रोन सर्वे में यह पाया गया कि घाट बंद दिखाए गए हैं, पर रात में वहीं से रेत निकाली जा रही है।
यह नेटवर्क इतना मजबूत है कि हर शिकायत, हर सूचना किसी न किसी स्तर पर लीक कर दी जाती है।
यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित आपराधिक संलिप्तता है।
🤬 मौन प्रशासन = सहमति!
जब सत्ताधारी नेताओं की शह पर रेत घाट खुलते हैं?
जब राजस्व और PWD विभाग आँख मूँद लेता है?
और जब पुलिस ‘सिर्फ़ कागजों पर कार्रवाई’ करती है —
तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सिस्टम की साजिश है, न कि केवल लापरवाही।
मौन प्रशासन जनता के प्रति अपने दायित्व से भाग रहा है, और यह मौन ही सबसे बड़ा अपराध बन चुका है।
कानून के रक्षक ही जब लुटेरों के साझेदार बन जाएँ, तो लोकतंत्र का विश्वास डगमगाने लगता है।
📢 जनता की मांग — “दोषियों पर FIR और बर्खास्तगी”
चंद्रपुर के जागरूक सामाजिक संगठन अनुपम बहुउद्देशीय सामाजिक संस्था ने राज्य सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है—
हाईकोर्ट निगरानी में उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की जाए।
PWD, राजस्व और पुलिस विभाग के दोषी अधिकारियों पर तत्काल FIR दर्ज की जाए।
अवैध उत्खनन से जुड़े कर्मचारियों की संपत्ति और बैंक खातों की जांच हो।
स्थानीय संस्थाओं ने यह भी कहा है कि बिना राजनीतिक शह के यह कारोबार संभव ही नहीं।
ग्रामीणों ने अब तय किया है कि अगर शासन नहीं जागा, तो वे न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएंगे।
लोगों का गुस्सा और आक्रोश अब सड़कों पर उतरने को तैयार है।
❗ आखिर सवाल ये हैं…
क्या चंद्रपुर में कानून का राज बचेगा या ‘रेत तस्करों’ का?
क्या शासन प्रशासन इस लूट को रोकने की हिम्मत दिखाएगा?
या फिर सत्ता संरक्षित यह तंत्र जनता के हक पर यूँ ही डाका डालता रहेगा?
क्योंकि यह सिर्फ रेत की बात नहीं, यह पूरे सिस्टम की नैतिकता की परीक्षा है।
अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाली पीढ़ियाँ नदियाँ नहीं, केवल रेत के गड्ढे देखेंगी।
प्रशासन की चुप्पी अब ‘सहमति की मुहर’ बन चुकी है।
✍️ हमारा दायित्व और प्रतिबद्धता
हम इस मुद्दे को यूँ ही नहीं छोड़ेंगे।
हम हर नाम, हर अधिकारी और हर गठजोड़ की सच्चाई सबूतों के साथ जनता के सामने रखेंगे।
क्योंकि यह सिर्फ़ रेत की नहीं — कानून, व्यवस्था और जनता के हक की लड़ाई है।
हमारी जांच टीम अगली रिपोर्ट में उन विभागीय कड़ियों का खुलासा करेगी जिनसे यह ‘रेत का साम्राज्य’ चल रहा है।
जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनके टैक्स से वेतन लेने वाले लोग किस तरह ‘रेत माफिया’ के सहयोगी बन गए हैं।
यह आवाज़ अब दबेगी नहीं — सच को सामने लाया जाएगा, चाहे कीमत कुछ भी हो।



