एक्सक्लूसिव: भंगार चोरी नहीं, महालूट! घुग्घुस की ‘बुद्धा कंपनी’ बनी संगठित अपराध का अड्डा; 100 टन भंगार का ‘काला सच’ उजागर

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एक्सक्लूसिव: भंगार चोरी नहीं, महालूट! घुग्घुस की ‘बुद्धा कंपनी’ बनी संगठित अपराध का अड्डा; 100 टन भंगार का ‘काला सच’ उजागर
 
चंद्रपुर/महाराष्ट्र 
दि. 01 डिसेंबर 2025
संवाददाता:– अनुप यादव ग्लोबल महाराष्ट्र & ग्लोबल मिशन न्यूज 
चंद्रपुर: जिले के घुग्घुस पुलिस स्टेशन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली बुद्धा कंपनी (Buddha Company) अब औद्योगिक इकाई नहीं, बल्कि संगठित अपराध और महालूट का केंद्र बन चुकी है। ग्लोबल महाराष्ट्र न्यूज़ द्वारा किए गए सनसनीखेज खुलासे ने पूरे प्रशासनिक अमले में हड़कंप मचा दिया है। जांच में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं हैं, जहाँ रक्षक ही भक्षक बन बैठे हैं और कानून का डर पूरी तरह समाप्त हो चुका है।
🕵️‍♂️ साजिश का मास्टरमाइंड: रक्षक ही निकला सबसे बड़ा मास्टरमाइंड?
 
इस पूरी ‘महालूट‘ की पटकथा रातों-रात नहीं लिखी गई। यह एक सोची-समझी साजिश थी, जिसका केंद्र बिंदु कंपनी का सिक्योरिटी इंचार्ज शफ्फु था। जिस व्यक्ति के कंधों पर कंपनी की सुरक्षा और करोड़ों की संपत्ति की जिम्मेदारी थी, वही चंद पैसों के लालच में इस खेल का सबसे बड़ा मोहरा बन गया।
सूत्रों के अनुसार, शफ्फु ने ही चोरों के लिए दरवाजे खोले और सुरक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया, जिससे बिना किसी रोक-टोक के टनों माल बाहर निकाला जा सके।
🚛 सिंडिकेट का पर्दाफाश: रहीस–शबीर–शाबिर की तिकड़ी.!
ग्लोबल महाराष्ट्र न्यूज़ की पड़ताल में इस लूट की पूरी सप्लाई चेन बेनकाब हो गई है। यह केवल चोरी नहीं, बल्कि एक संगठित सिंडिकेट है जिसने 100 टन से ज्यादा भंगार बाजार में खपा दिया है:
 * रहीस: इस शख्स के जरिए कंपनी से भंगार उठवाया गया।
 * शबीर: इसे सीधे तौर पर 60 से 70 टन माल की सप्लाई दी गई।
 * शाबिर: चंद्रपुर शहर में इरई नदी (Irai River) के पास, जयराज ढाबे के सामने स्थित इसके गोदाम में लगभग 30 से 35 टन भंगार डंप किया गया।
महज इन तीन नामों के जरिए ही कंपनी का बड़ा हिस्सा गायब कर दिया गया, जो सुरक्षा एजेंसियों की नाक के नीचे हुआ।
🧠 पुलिस को गुमराह करने का ‘प्री-प्लान्ड ड्रामा?
 
अपराधी जानते थे कि मामला उठने पर पुलिस जांच होगी, इसलिए उन्होंने बचने का रास्ता पहले ही तैयार कर लिया था। सूत्रों का दावा है कि मातार देवी परिसर के पास जानबूझकर चोरी का कुछ माल जमा किया गया है।
यह एक “रिकवरी ट्रैप” है—ताकि जब पुलिस जांच करे, तो उन्हें यह माल दिखाकर शांत कर दिया जाए और कहा जाए कि “चोरी पकड़ा गई है”, जबकि असली माल (100 टन से ज्यादा) पहले ही ठिकाने लगाया जा चुका है।
🏗️ मजदूरों का गुस्सा या खुली डकैती?
कंपनी प्रबंधन की लापरवाही और मजदूरों का वेतन न देने की हठधर्मिता ने आग में घी का काम किया। वेतन न मिलने से नाराज कामगारों और असामाजिक तत्वों ने जिसे जो मिला, वह लूट लिया। हालात “जंगलराज” जैसे हो गए हैं:
 * कई टन वजनी पोकलेन की बाल्टी (Bucket) लोग उखाड़ ले गए।
 * हैरानी की बात यह है कि पूरा का पूरा हायवा (Hyva) ट्रक ही गायब कर दिया गया और उसे निजी घरों तक पहुंचा दिया गया।
❓ सुलगते सवाल: महाराष्ट्र है या जंगलराज?
 
बुद्धा कंपनी में जो हुआ, वह महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य की कानून व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग है। यह दृश्य बिहार के पुराने जंगलराज की याद दिलाता है। अब सबसे बड़े सवाल प्रशासन के सामने हैं:
 * मिलीभगत: क्या स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत के बिना इतना बड़ा कांड संभव था?
 * प्रबंधन की भूमिका: क्या कंपनी प्रबंधन के बड़े अधिकारी भी इस लूट में शामिल हैं?
 * कार्यवाही: क्या पुलिस सिंडिकेट के सरगनाओं (शबीर, शाबिर, शफ्फु) पर मकोका (MCOCA) जैसी सख्त कार्रवाई करेगी, या फिर छोटे चोरों को पकड़कर फाइल बंद कर दी जाएगी?
यह खबर ग्लोबल महाराष्ट्र & ग्लोबल मिशन न्यूज के सुत्रों के हवाले से बनाई गई है।